रहस्य मरुभूमि का
भाग-10-
विमल पसीने से भीग चुका था । होटल के कमरे में कोने में एक जीरो पावर का बल्ब जल रहा था।
उसने होटल की खिड़की से बाहर झांका तो सड़क पर एक स्ट्रीटलाइट के अलावा और कुछ भी नहीं था।रहरहकर आवारा कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दे रही थी।
जयपुर से थोड़ा ही पहले करीबन एक अपेक्षाकृत शांत जगह पर वह होटल था।
विमल को न जाने क्या हुआ,वह कमरे में चहलकदमियाँ करने लगा।
उसकी बहुत इच्छा थी अपनी मम्मी रमाजी से बातें करने की पर इतनी रात गए...विमल को उचित नहींमहसूस हुआ ।
अचानक उसे शिल्पी दीदी की बातें याद आ गईं।उन्होंने उसे लूसिडड्रीम्स के बारे में बहुत अधिक समझाया था।
,,..सपनों को देखने की कोशिश करो...एक अनुवाद की तरह..एक क्रिटिक की तरह।..न जाने कोई स्वप्न भविष्य के बारे में सूचना दे रही हो..!!,,
विमल जैसे सोते में से जाग उठा।
वह सोचने लगा...
,,...हाँ,यही एक सपना मुझे बारबार क्यों आता है...!!क्या कोई रहस्य है इनमें...?,,उसने खुद से ही प्रश्न किए।
फिर जमीन पर आसन बिछाकर पद्मासन में बैठकर अपने मस्तक पर एकाग्र होने की कोशिश करने लगा..,जैसाकि शिल्पीदी ने उसे बताया था।
आशा के विपरीत वह ध्यान में डूबता चला गया...जैसे कोई और शक्ति उसे अपनेआपमें खींच रही हो.....!!
आधा घंटा कब का बीत गया था..!
अचानक बाहर जोरदार चिल्लाने की आवाज़ आई..,,बचाओ...कोई..मुझे..बचाओ...!!,,
बाहर सन्नाटा था।इतनी जोरदार आवाज...विमल एकाएक चौंक गया।
वह तुरंत अपने कमरे से निकलकर बाहर रिशेप्शन वाले कोरिडोर में पहुंचा।
वहां कोई भी नहीं मौजूद था।विमल थोड़ा किचकिचाते हुए धड़ल्ले से बाहर निकल आया।
होटल के गेट पर दरबान मौजूद था।
दरबान बोला--,,क्या बात है,साहब...!!आपको कुछ चाहिए क्या ?,,
विमल बोला--,,बड़ी तेज आवाज आई थी अभी...कोई चिल्ला रहा था...बचाओ,बचाओ..!!,,
दरबान सकपका गया।बोला--,,न्..न...नहीं..तो..!!ऐसा तो कुछ भी नहीं सुना हमने..!!,,
विमल--,,ऐसा कैसे हो सकता है..मैंने तो...!!,,
अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि फिर से वही आवाज आने लगी--,,बचा...ओ...!!,,
विमल--,,यही आवाज तो थी..क्यों..अब सुनाई दिया..!!...जल्दी से पुलिस को कॉल करो!!,,
दरबान--( डरकर) साहब.., यहां कोई पुलिस खोजने नहीं आएगी....,आप किसी मुसीबत को निमंत्रण मत दीजिए ..साहब...!!
...यह आवाज जादूगर रतन सेन की है।,,
विमल--,,रतन सेन...मैं समझा नहीं..और जादूगर...व्हाट ए फन...!!
दरबान--,,
साहब,रतन सेन की ताकत और समस्त जादू को जादूगरनी मायाविनी ने अपने तंत्रजाल में फँसा लिया है। रतन सेन अब आदमी न रहकर परछाई बन गया है।
रतनसेन अब इधरउधर सबसे मदद माँगता रहता है!!,,
विमल--,,ये क्या कह रहे हो आप ?आदमी और परछाई...
ये जादू...और जादूगरनी...ये सब क्या है?,,
दरबान--,,साहब,आपलोग पढ़ेलिखे हो। मेरी बात का यकीन नहीं करोगे।
बात थोड़ा पुरानी है।जूनागढ़ में एक रहस्यमयी तांत्रिका मायाविनी रहती थी।वह बहुत ही बुरी थी।अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए अपने तंत्र और माया जालों में सबको फँसाती थी।
अक्सर कोई न कोई यहां से गायब हो जाता था...!!
...लोग कहते हैं कि उस पिशाचिनी ने रेत में अपना एक तिलिस्मी राजमहल बनाया था,जहाँ वह गायब हुए लोगों को बंधक बनाकर रखती थी।
उस समय यहां के सबलोग उससे बहुत ही परेशान हो गए थे।बहुत ही डर के साये में जी रहे थे।
उस समय एक बहुत ही नेकदिल जादूगर रहता था--रतनसेन।वह एक बहुत बड़ा संगीतज्ञ भी था।जादू का गूढ़ ज्ञाता भी था।
यहां के लोग मायाविनी के तंत्रजाल और बुरे करमों से मुक्ति के लिए रतनसेन के पास गए और उससे गुहार लगाया।
रतनसेन दयालु था,मान गया।लेकिन मायाविनी के शक्तिशाली तंत्रों और इंद्रजाल के आगे टिक नहीं पाया ।दुष्ट मायाविनी ने अपने इंद्रजाल में उसे फँसाकर गायब कर दिया।,,
विमल--ह्म्म्म...!...ये सच है या कहानी है।
दरबान--,,साहब, सभीको यह चीख सुनाई भी नहीं देती है।आपको कैसे दी,यह भी हैरान करनेवाली बात है!,,
विमल--,,हो सकता है ..!!क्या मैं रतनसेन की मदद कर सकता हूँ?,,
विमल होटल के बाहर निकलकर थोडी दूर जाता है।देखता है एक वृद्ध व्यक्ति जमीन पर गिरा पड़ा है और चारोंओर जंगली कुत्ते उसको घेरकर खड़े हैं।
विमल अकचका जाता है।अभी तो गार्ड ने जो कहा वह ठीक इसके विपरीत था।
विमल सड़क पर पड़े डंडों से एक के बाद एक प्रहार करता है,जिससे सब जंगली कुत्ते भाग खड़े होते हैं।
विमल उन वृद्ध को उठाकर खड़ा करता है।
विमल--,,आप कौन हैं बाबा...,इतनी रात में यहां क्या कर रहे हैं?,,
वह वृद्ध बोलते हैं--,,आज तक मैं एक परछाई बनकर बस अपनी जान बचाता फिर रहा था।तुमने मेरी जान बचाकर बहुत बड़ा उपकार कियाहै..मेरे बच्चे।...मैं...रतनसेन हूँ..बेटा...!!,,
विमल--,,जी,बाबा मुझे पता है।आप जादूगर हैं न!!,,
रतनसेन--,,ये...ये किसने बताया तुम्हें..!!( चौंककर)
..फिर हँसने लगा...हा..हा...!!,हाँ,बेटा,सच ही है,पहले मैं जादू की बारीकियां और रहस्य सीख रहा था...लेकिन अब सब खत्म...!!,(हाँफते हुए )उस पिशाचिनी ने सब खत्म कर दिया है मेरा...अब कुछ भी नहीं बचा...!!,,
विमल--,,बाबा,आप कहाँ जाएंगे,बता दें तो मैं वहां तक छोड़ दूंगा।,,
रतनसेन--,,अंधे का कहाँ कोई ठिकाना...आज यहां तो कल वहां...तुम अपना परिचय दो बेटा...कहाँ से आए हो और कहाँ जा रहे हो?,,
विमल--,,बाबा मैं...और सारी बात बतला देता है।
रतनसेन कुछ देर तक चुप रहता है फिर बोलता है
--ह्...हाँ...,मुझे याद आया...मेरे पास एक दर्पण है...!, उसमें थोड़ी जादुई शक्ति मैंने इकट्ठी की थी....तुम इसे ले लो..,,।
रतनसेन अपने कुरते के लंबे पौकेट से एक आईना निकालकर विमल को देता है।
रतनसेन--,,बेटा,अब कोई शक्ति तो मुझमें शेष नहीं रही...लेकिन यह दर्पण तुम्हारी मदद अवश्य करेगी..
...यह अधिक तो मदद नहीं कर सकती..लेकिन यह तुम्हारा मार्गदर्शन अवश्य करेगी।
इसे तुम अपने साथ हमेशा रखना।,,
विमल उस आईने को हाथ में ले लेता है।एक सामान्य सा आईना था,जिसमें एक हैंडल लगा था।
विमल उसे उलटपुलट कर देखता है।फिर रख लेता है।
विमल--,,यह मायाविनी कौन है बाबा ..?,,
रतनसेन--मत पूछो बेटा...एक दुष्ट,पिशाचिनी है --मायाविनी।थार के रेगिस्तान में अपना एक मायावी महल बना रखा है...!!
....अब मैं चलता हूँ बेटा...कहीं मैं फिर से परछाई न बन जाऊं... प्रभु तुम्हारा भला करें!!,,
रतनसेन आगे बढ़कर अंधेरे में गुम हो जाता है और विमल वापस होटल में लौट आताहै।
****
स्वरचित
सीमा...✍️✨
©®
क्रमशः
#उप
Ashant.
22-Mar-2022 01:04 AM
Very nicely written.
Reply
Dr. Arpita Agrawal
04-Mar-2022 06:29 AM
अत्यंत रहस्यमयी कहानी
Reply
Seema Priyadarshini sahay
04-Mar-2022 04:58 PM
बहुत बहुत शुक्रिया आपका मैम
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